स्वास्थ्य सेवाएँ और मानव संसाधनो की कमी
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विश्वव्यापी कोरोना वायरस (COVID-19) से शिकार लोगों की संख्या लाखों में पहुँच गयी है तो वहीं अबतक इससे करीब 28 हजार से ज्यादा लोग अपनी जान गवां चुके हैं। जिस तरीके से इस महामारी ने विश्वभर को अपने चपेट में लिया है निश्चित रूप से इसने दुनिया-भर की सरकारों, अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थाओं की तैयारियों को ठेंगा दिखाने का काम किया है।
भारत सरकार ने भी देश में बढ़ते इस गंभीर परिस्थिति को देखते हुए 21 दिनों तक सम्पूर्ण बंद का त्वरित आदेश दिया है। साथ ही साथ केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न मंत्रालयों ने अपने-अपने क्षेत्रों में कमर कसते हुए नज़र आ रहें हैं। पर इन तैयारियों के बीच कुछ गंभीर सवाल सरकार के नीतियों, कार्य क्षमताओं और उनके समय पर न कार्रवाई करने को लेकर भी उठ रहे हैं। चूँकि वर्ल्ड बैंक के अनुसार भारत की 65.97% जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है इसलिए प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य सेवाओं का सही काम करना ही भारत को इस विपदा से निकाल सकता है। वर्तमान में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में 25650 चिकित्सकों की आवश्यकता है जिससे प्रतिदिन करीब दस लाख मरीज़ लाभ उठा सकेंगे।
इन सब सवालों में सबसे प्रमुख सवाल देश में स्वास्थ्य से जुड़ी मानव संसाधनों की भारी कमी का है।सरकारी संस्थाओं में पढ़ने वाले 50 प्रतिशत चिकित्सक में से 80 प्रतिशत निजी क्षेत्र में काम करते हैं वहीं 70 प्रतिशत नर्सेज़ और मिडवाइफ़स का निजी क्षेत्र में कार्यरत होना भी विषम विभाजन का सटीक उदाहरण है।
पिछले वर्ष ही एनएसएसओ आधारित एक अध्ययन ने यह खुलासा किया था कि भारत में स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या प्रति 10 हजार लोगों पे मात्र 20.6 की थी जोकी विश्व स्वास्थ्य संगठन के द्वारा निर्धारित न्यूनतम संख्या 22.8 से भी कम थी। ख़ास तौर पर मध्य एवं पूर्वी राज्यों में स्वास्थ्य कर्मियों की भारी कमी होना यह दर्शाता है की पिछड़े हुए राज्य स्वास्थ्य समस्याओं के सबसे अधिक शिकार हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन रिपोर्ट 2016 के अनुसार ग्रामीण इलाक़ों में पाँच में से एक ही डॉक्टर प्रैक्टिस करने के लिए योग्य है, 31.4 प्रतिशत ऐलोपैथिक डॉक्टर मात्र बारहवीं पास हैं और 57.3 प्रतिशत के पास कोई भी मेडिकल योग्यता नही है। नर्स और दाइयों की बात करें तो मात्र 33% ने दसवीं या उससे ज़्यादा की पढ़ाई की हैं और केवल 11 प्रतिशत के पास किसी तरह की मेडिकल योग्यता है।इन सबके अलावा समय पर उचित ट्रेनिंग का अभाव, सही नीतियों की कमी और योग्य मेडिकल पेशेवर का ग्रामीण इलाक़ों में न जाना गम्भीर समस्या है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 पूरी तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए सही दिशा दे रहा है हालाँकि नियमों का अनुपालन न होना एक गंभीर समस्या ज़रूर है, केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर इसपे काम करने की जरूरत है, जिससे राज्य एक प्रभावी योजना बना सकें और प्रतिभाशाली स्वास्थ्यकर्मीयों की नियुक्ति की जा सके जिससे संसाधनों का सदुपयोग हो। इसके अलावा सरकार को अन्य सम्बंधित संस्थानों के साथ मिलकर जागरूकता, रीसर्च, और पारदर्शिता लाने की जरूरत है।